Saturday 21 November 2015

तुम हो

हाँ वो तुम हो...

होंठ अगर मुस्करातें है तो उसकी वजह तुम हो, 

साँसें अगर चलती है तो उसकी वजह तुम हो, 

कैसे बताऊं तुझे मेरी ज़िंदगी की वजह तुम हो. 

दुवाओं में जिसको माँगा वो शक़स तुम हो, 

हक़ीक़त में रब से मिलवाया जब रब ने, तो वो भी तुम हो!! 



कैसे बीत गये ये कुछ महीने कुछ साल तेरे साथ, 

बस हाथों में यों ही लिए तेरे हाथ!! 

बस यों ही सारी ज़िंदगी तेरे साथ बीताने की आरज़ू है, 

और ना मिले अगर तेरा साथ तो ज़िंदगी एक मरी रूह है!! 



ज़िंदगी का मकसद बस शायद पाना था तुझे, 

कभी सोचा ना था, यूँ रुलाने था तुझे, 

आज इस मोड पर अपने आप से नफ़रत है मुझे, 

क्योंकि हर मोड पर ही रुलाया है तुझे, 

जो लम्हें तुझसे लड़कर बारबाद कर दिए उन्हें वापस लाना है मुझे, 

और वादा है इसी ज़िंदगी में हर मोड पर अब हसाना है तुझे!! 



यह साँसें अब चलेगी तो तेरे लिए, रुकेंगी तो तेरे लिये, 

फिर कह देता हूँ आज तुझसे, ज़िंदा हूँ बस तेरे लिए, बस तेरे लिए, बस तेरे लिये..........

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