Monday 30 November 2015

नुरानी चहरे से ये नज़र नहीं हटती

नुरानी चहरे से ये नज़र नहीं हटती

ये कैसी प्यास है मन की, नहीं बुझती नहीं बुझती,
ये तृष्णा तेरे दर्शन की, नहीं बुझती नहीं बुझती.

ये मुखड़ा चाँद सा, जो देखे एक बार,
देखना चाहता है इसे वो बार -बार,

तड़प ये कैसी है, ये कैसा है खुमार,
इस नुरानी चहरे से ये नज़र नहीं हटती.

तुम्हारे बिन कहीं ये दिल लगता नहीं,
निगाहों को अपनी कोई जंचता नहीं,

ख्यालों में कोई और बसता नहीं,
इस नुरानी चहरे से ये नज़र नहीं हटती.

रोके से टोके से कहाँ रुक पाते हैं,
प्यार की डोर से बंधे चले जाते हैं,

की सुध बुध भूल के तुझमें खो जाते हैं,
इस नुरानी चहरे से ये नज़र नहीं हटती.

ये कैसा बंधन है, ये कैसा नाता है,
तोड़ने से भी ये टूट न पाता है,

प्यार ऐसा "HD" नज़र न आता है,
इस नुरानी चहरे से ये नज़र नहीं हटती.

♡=HD=☆

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