हक विदाई का
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तुम्हारा ही हिस्सा हूँ
ना समझ आई
प्रगाढ़ता प्रेम की
तो
इक भूला बिसरा
किस्सा हूँ
ना सुनी अनकही कभी
दिल की बतियां
समझे ना तुम कभी
प्रीत या बेबसी मेरी
सूखे लब
दरारें पर गई जिनमें
खेलती थी मुसकुराहटें
कभी
कोई तो वो इक लम्हा होगा
मुझ बिन न कटता होगा जो
वहीं अधूरा पल दे देना
भर लेना आगोश में
चूम लेना पलकें
जब भी आ जाए
विदाई की मेरी घड़ी
इच्छा पूरी होगी ये तो
हाँ
कह भी दो ना
जान मेरी
लेखिका :- प्रीति पोद्दार
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