Sunday 4 October 2015

सुलगता मन

सुलगता मन --------------- कहते है लोग मिलन में जुदाई है बंद कर ली अँखियाँ दिख न जाए कहीं जो यादों में किसी के डबडबा आई है रोक लिया खुद को खुशबू उस तक ना पहुंचे संगदिल मेरी तरह वो भी तङपे मालूम तो हो इंतजार किसे कहते है विरह में जले जो दिल अगन और तपन उसकी आखिर किसे कहते हैं लेखिका :- प्रीति पोद्दार

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