Saturday 3 October 2015

चाँद फिसला मुठ्ठी से

चाँद फिसला मुठ्ठी से
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फासले दरमियां आ गए
लो आसमां पे थे
जमीं पे आ गए
चाँद रख दिया था
जिन हाथों पर
लाकर तूने
कर ली थी
झठ से मुठ्ठी
बंद मैंने
हाए
लगी प्यार को मेरे
खुद की नजर
शायद
गुमां था होगा ना जहां में
मुझसे खुशनसीब
बस
यहीं इक छोटी सी भूल
हो गई हमसे
जिसे चाहा
खुद से ज्यादा
कसूरवार
उसी के हो गए
प्रीति

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