Friday 23 December 2016

मैं एक लड़की….अपनी ही बात कहती हूँ

घडी-घडी, हर पग-पग पर
अपने को हीन समझती हूँ ।
मैं एक लड़की…. अपनी ही बात कहती हूँ ।
है जिस दिन मैंने जनम लिया
न गीत बजी न शहनाई,
पर, नया संसार मिला
अपने और अनजानों की
खुशियां अपार मिली
फिर हंसती-खेलती हुई बड़ी
एक अल्हड़-उम्र के सीमा पर हुई खड़ी
माँ कहती -ज्यादा हंसों नहीं
पापा कहते – ज्यादा खेलो नहीं
दादी कहती – पढ़-लिखकर तुम कुछ नहीं कर सकते
कभी-कभी तो शिक्षक भी है लड़कों को बड़े समझते।
राहों पर निकलूं तो सबकी निगाहें घूरती ऐसे,
हमने कोई गुनाह किया हो जैसे।
पर गलती है क्या मेरी ?
मैं ये नहीं समझती हूँ।
मैं एक लड़की….
अपनी ही बात कहती हूँ
घडी-घडी, हर पग-पग पर
अपने को हीन समझती हूँ ।
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2 comments:

Shyam said...

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Shyam said...
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