Saturday 26 September 2015

पीड़ा

पीड़ा ------ रह-रहकर बिखरने की आदत हो गई अब मुझको तूफां के थपेड़ों का डर कैसा या फिर बगावत कैसी सुकूं चाहा जब कभी भी दो पल का गली के मुहाने झोपड़ी मेरी पीड़ को मिल ही गई 
By Priti Poddar

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