Wednesday 10 June 2015

तुमसे मिलकर

एक ताज़गी मिली, तुम से मिल कर.....
ज़िन्दगी जो बेपरवाह... कट रही थी,
एक ख़वाहिश मिली, तुम से मिल कर.....
एक बेबसी...बेकरारी...जो ज़हन में बस गई थी, उस से निज़ात मिली, तुम से मिल कर.....
रातो की बेकली,जो रूह को परेशां करती थी, रूह को सुकून की सौगात मिली,
तुमसे मिल कर....
इन बेचैनियों की इन्तहा ये थी, की जीना था मुश्किल, मौत थी आसान, ज़ीस्त को बचाया...इस दोज़ख से, तुम से मिल कर....
और ...
क्या कहू....इस से ज्यादा............
मैंने ख़ुद को पाया है....
तुम से मिल कर .....!!!!!!!!!!

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